धर्म का अर्थ है धारण करना । धर्म धारण करने की प्रकृति है | धर्म एक आध्यात्मिक साधना से जुड़ने की प्रक्रिया है | धर्म व्यक्ति को अपराध एवं बुरे कर्मों से दूर कर अच्छे कर्मों को करने के लिए प्रेरित करता है, जब व्यक्ति आध्यात्मिकता से जुड़ने लगता है तो वह ध्यान, योग, साधना को करना प्रारंभ कर देता है, जिससे उसका आत्मविश्वास एवं मनोबल बढ़ने लगता है | आत्मविश्वास एवं मनोबल बढ़ने से व्यक्ति में साहस की भावना बलवती होती है, तथा डर की भावना कमजोर होती है |
धर्म में आस्था व्यक्ति के शरीर एवं मन मस्तिष्क में कई सकारात्मक तत्वों को बढ़ाती है | आजकल युवाओं में तनाव की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है | युवावर्ग आजकल छोटी-छोटी बातों को लेकर भी तनाव ग्रस्त रहने लगे हैं | युवाओं और छात्रों में तनाव को सहन करने की क्षमता धीरे-धीरे कम होती जा रही है, जिसके परिणाम स्वरुप छात्रों एवं युवाओं में क्रोधित होने, बिना विचार किये प्रतिक्रिया देने तथा तनाव सहन नहीं कर पाने के फलस्वरुप आत्महत्यायें करने की काफी घटनाएं हो रही है |
युवाओं एवं छात्रों में इस प्रकार की प्रवृत्ति को रोकने का सबसे उत्तम उपाय उन्हें निरंतर धर्म से जोड़े रखने एवं धर्म तथा भगवान में उनकी आस्था को निरंतर बढ़ाना है, क्योंकि धर्म एवं भगवान में आस्था उन्हें सकारात्मकता की ओर ले जाती है, तथा आत्मविश्वास को बढ़ाती है । चलिए युवाओं और छात्रों को धर्म एवं भगवान से निरंतर जोड़ने का प्रयास करे एवं ऐसी अनचाही घटनाओं को रोकने का प्रयास करें |
इसमें परिवार के वरिष्ठ जन अहम भूमिका निभा सकते हैं, क्योंकि बच्चों में बचपन से ही निरंतर मंदिर जाने की प्रवृत्ति जागृत की जा सकती है, जिससे वह भावनात्मक एवं मानसिक रूप से मजबूत हो सके तथा भगवान राम एवं श्रीकृष्ण से प्रेरणा ले सके तथा उनकी कठिन जीवन यात्रा से कठिनाइयों और समस्याओं से मुकाबला करना सीख सके | तो चलो उन्हें साथ लेकर चलें धर्म और अध्यात्मिक दर्शन की यात्रा पर ………..
